Hathras Case: देर रात शव जलाना मानवाधिकारों का हनन, DM पर हो कार्रवाई: हाईकोर्ट

Hathras Case Update: कोर्ट ने 11 पेज के आदेश में सरकार से पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर के ही खिलाफ कार्रवाई किए जाने और जिलाधिकारी को बख्श देने पर सवाल भी खड़े किए हैं. साथ ही पीड़िता के साथ बलात्कार (Rape) नहीं होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार को कड़ी फटकार लगाई.

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लखनऊ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने हाथरस (Hathras Case) कथित सामूहिक बलात्कार मामले में मृत लड़की का शव प्रशासन द्वारा देर रात जलाए जाने की घटना को मृतका और उसके परिवार के लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन करार देते हुए जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. पीठ ने मंगलवार को सुनाए गए आदेश में सरकार को हाथरस जैसे मामलों में शवों के अंतिम संस्कार के सिलसिले में नियम तय करने के निर्देश भी दिए हैं. पीड़ित परिवार ने सोमवार को पीठ के समक्ष हाजिर होकर आरोप लगाया था कि प्रशासन ने उनकी बेटी के शव का अंतिम संस्कार उनकी मर्जी के बगैर आधी रात के बाद करवा दिया. इससे पहले उन्हें अपनी बेटी के शव को अंतिम दर्शन के लिए घर तक नहीं लाने दिया गया.

अदालत ने इसी का स्वत: संज्ञान लेते हुए अपने आदेश में कहा कि हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने खुद कुबूल किया है कि शव का रात में अंतिम संस्कार करने का फैसला जिला प्रशासन का था, लिहाजा राज्य सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करे ताकि मामले की पूरी विधिक और न्यायिक कार्यवाही निष्पक्ष रूप से हो सके. न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की पीठ ने अपने 11 पेज के आदेश में सरकार द्वारा इस मामले में सिर्फ तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर के ही खिलाफ कार्रवाई किए जाने और जिलाधिकारी को बख्श देने पर सवाल भी खड़े किए. न्यायालय ने पीड़ित परिवार को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने के भी निर्देश दिए.

सार्वजनिक रूप से कोई भी बयान देने से परहेज करने को कहा

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार के अधिकारियों, राजनीतिक पार्टियों तथा अन्य पक्षों को इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कोई भी बयान देने से परहेज करने को कहा है. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडियासे अपेक्षा की कि वे इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने और परिचर्चा करते वक्त बेहद एहतियात बरतेंगे. अदालत ने कहा कि मामले की जो भी जांच चल रही है. उन्हें पूरी तरह गोपनीय रखा जाए और इसकी कोई भी जानकारी लीक नहीं हो. न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार और जिलाधिकारी लक्षकार को भी कड़ी फटकार लगाई.

अदालत ने प्रशांत कुमार को बलात्कार की परिभाषा समझाते हुए उनसे पूछा कि उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया? जबकि वह मामले के विवेचनाधिकारी भी नहीं थे. पीठ ने कहा कि कोई भी अधिकारी जो मामले की जांच से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है, उसे ऐसी बयानबाजी नहीं करनी चाहिए जिससे अनावश्यक अटकलें और भ्रम पैदा हो. हाथरस कांड की मीडिया रिपोर्टिंग के ढंग पर नाराजगी जाहिर करते हुए अदालत ने कहा ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल दिए बगैर, हम मीडिया और राजनीतिक पार्टियों से भी गुजारिश करते हैं कि वे अपने विचारों को इस ढंग से पेश करें कि उससे माहौल खराब न हो और पीड़ित तथा आरोपी पक्ष के अधिकारों का हनन भी न हो. किसी भी पक्ष के चरित्र पर लांछन नहीं लगाना चाहिए और मुकदमे की कार्यवाही पूरी होने से पहले ही किसी को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए’.

मुआवजा देने के निर्देश

अदालत ने पीड़ित परिवार को पूर्व में प्रस्तावित मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कहा कि अगर परिवार इसे लेने से इनकार करता है तो इसे जिलाधिकारी द्वारा किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करा दिया जाए. उच्च न्यायालय ने सोमवार को हाथरस मामले के पीड़ित परिवार और राज्य सरकार के अधिकारियों की सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसे मंगलवार को जारी किया गया. गौरतलब है कि गत 14 सितंबर को हाथरस जिले के चंदपा थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली 19 वर्षीय दलित लड़की से चार युवकों ने कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया था. उसके बाद 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी.

उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए सोमवार को पीड़ित परिवार को अदालत में हाजिर होने को कहा था. इसके अलावा गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को भी तलब कर मामले की सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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