क्या था चीन से लौटे उन 12 जहाजों में, जिसके कारण यूरोप की दो करोड़ से ज्यादा आबादी खत्म हो गई

इतिहास में स्पेनिश फ्लू (Spanish flu) से पहले भी किसी महामारी (pandemic) का जिक्र मिलता है तो वो है ब्लैक डेथ (Black death) का. असल में प्लेग (plague) के एक खास प्रकार (bubonic plague) ने यूरोप (Europe) की एक तिहाई आबादी को खत्म कर दिया.

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दुनिया के लगभग तमाम देश फिलहाल कोरोना वायरस की चपेट में हैं. 24 लाख से ज्यादा कोरोना संक्रमितों में 1 लाख 65 हजार मौतें हो चुकी हैं. अधिकांश देश अपने यहां लॉकडाउन लगाए हुए हैं ताकि इस बीच कोई दवा या टीका मिल सके. या फिर मौसम बदलने पर वायरस का कहर घट जाए. लेकिन आज से सैकड़ों साल पहले जब एक महामारी फैली थी तो इससे बचाव या रोकथाम के तरीके एक-दूसरे तक पहुंचाने का भी कोई जरिया नहीं था. बीमारी इतनी घातक थी कि उसे ब्लैक डेथ कहा जाने लगा.

बंदरगाह लौटे उन जहाजों में थीं लाशें
बीमारी की शुरुआत होती है साल 1347 के अक्टबूर से, जब 12 जहाज इटली के सिसली बंदगाह पर लगे. जहाज पर गए लोगों के परिवार उनके इंतजार में किनारे खड़े थे. जब तट पर लगने के काफी देर बाद तक जहाज से कोई नहीं उतरा तो नीचे इंतजार में खड़े लोग ऊपर पहुंचे. वहां का नजारा देखते ही चीखें निकल गईं. जहाज पर लाशों का ढेर लगा था. कुछेक लोग ही जिंदा थे. उन्हें उठाकर लाया गया और ठीक होने का इंतजार शुरू हुआ.

जिंदा बचे लोगों की हालत भी ठीक नहीं थे, उनके शरीर पर गिल्टियां बनी हुई थीं, जिनसे पस (मवाद) और खून बह रहा था. वे लोग तो ठीक नहीं हुए, बल्कि उनकी देखभाल कर रहे लोग भी बीमार होने लगे. अगले 5 सालों में उन 12 जहाजों के कारण यूरोप में 20 मिलियन से भी ज्यादा जानें गईं. मौतों का ठीक आंकड़ा अब तक बताया नहीं जा सका लेकिन माना जाता है कि इसकी वजह से एक तिहाई यूरोपियन आबादी की मौत हो गई. बाद में उन जहाजों को डेथ शिप कहा गया.

दुनिया के लगभग तमाम देश फिलहाल कोरोना वायरस की चपेट में हैं. 24 लाख से ज्यादा कोरोना संक्रमितों में 1 लाख 65 हजार मौतें हो चुकी हैं. अधिकांश देश अपने यहां लॉकडाउन लगाए हुए हैं ताकि इस बीच कोई दवा या टीका मिल सके. या फिर मौसम बदलने पर वायरस का कहर घट जाए. लेकिन आज से सैकड़ों साल पहले जब एक महामारी फैली थी तो इससे बचाव या रोकथाम के तरीके एक-दूसरे तक पहुंचाने का भी कोई जरिया नहीं था. बीमारी इतनी घातक थी कि उसे ब्लैक डेथ कहा जाने लगा.

बंदरगाह लौटे उन जहाजों में थीं लाशें
बीमारी की शुरुआत होती है साल 1347 के अक्टबूर से, जब 12 जहाज इटली के सिसली बंदगाह पर लगे. जहाज पर गए लोगों के परिवार उनके इंतजार में किनारे खड़े थे. जब तट पर लगने के काफी देर बाद तक जहाज से कोई नहीं उतरा तो नीचे इंतजार में खड़े लोग ऊपर पहुंचे. वहां का नजारा देखते ही चीखें निकल गईं. जहाज पर लाशों का ढेर लगा था. कुछेक लोग ही जिंदा थे. उन्हें उठाकर लाया गया और ठीक होने का इंतजार शुरू हुआ.

जिंदा बचे लोगों की हालत भी ठीक नहीं थे, उनके शरीर पर गिल्टियां बनी हुई थीं, जिनसे पस (मवाद) और खून बह रहा था. वे लोग तो ठीक नहीं हुए, बल्कि उनकी देखभाल कर रहे लोग भी बीमार होने लगे. अगले 5 सालों में उन 12 जहाजों के कारण यूरोप में 20 मिलियन से भी ज्यादा जानें गईं. मौतों का ठीक आंकड़ा अब तक बताया नहीं जा सका लेकिन माना जाता है कि इसकी वजह से एक तिहाई यूरोपियन आबादी की मौत हो गई. बाद में उन जहाजों को डेथ शिप कहा गया.

इलाज कैसे होता था
तब प्लेग के इलाज के लिए अजीबोगरीब तरीके अपनाए जाते थे, जैसे गिल्टियों पर उबलता पानी डाल देना या उस हिस्से को गर्म सलाख से दागना. ज्यादातर मरीजों की इलाज के दौरान ही मौत हो जाती. जल्दी ही यूरोप के लोग इस बीमारी को ईश्वर की नाराजगी मानने लगे. इससे बचने के लिए वे तरीके खोजने लगे. इसी दौरान एक अजीब और भयानक प्रथा जन्मी, जिसे मानने वाले ईश्वर के गुस्से से बचने के लिए खुद को कोड़े मारते थे, उन्हें Flagellants कहा जाता था. ये लोग साढ़े 33 दिनों तक दिन में रोज 3 बार खुद को कोड़े मारते. धीरे-धीरे ये पंथ लोकप्रिय हो गया लेकिन प्लेग ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा.

हुई आइसोलेशन और क्वारंटाइन की शुरुआत
लगभग पांच सालों तक यूरोप की आबादी इसका शिकार होती रही. आखिरकार एक तरीका निकला. लोगों ने चीन या एशिया से व्यापार कर लौटने वाले जहाजों को आइसोलेशन में रखना शुरू कर दिया, जब तक कि ये साबित नहीं हो जाता था कि जहाज के लोग संक्रमित नहीं हैं. पहले ये आइसोलेशन पीरियड 30 दिन था, जिसे trentino कहा जाता था. आज कोरोना के मामले में इसी टर्म को क्वारंटाइन कहा जाता है. अब प्लेग का कहर लगभग खत्म हो चुका है लेकिन तब भी World Health Organization (WHO) के मुताबिक हर साल हजार से 3 हजार लोग इसका शिकार होते हैं.

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